अभ्यास प्रश्न
प्रश्न 1: हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्दचित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है, उससे प्रेमचंद के चित्र की कौन-सी विशेषताएँ उभरकर आती हैं?
उत्तर : हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का ऐसा चित्र प्रस्तुत किया है जिसमें उनकी सादगी, ईमानदारी और संघर्षशीलता स्पष्ट झलकती है।वे बाहरी आडंबर से दूर, साधारण पहनावे वाले व्यक्ति थे। फटे जूते पहनकर भी वे किसी कार्यक्रम में पहुँचने में संकोच नहीं करते थे। उनका व्यक्तित्व यह दर्शाता है कि महानता बाहरी सजावट में नहीं, बल्कि विचारों की गहराई और मानवीय मूल्यों में होती है।साथ ही, उनके भीतर आत्मसम्मान, जनजीवन से गहरा लगाव और साहित्य के प्रति ईमानदारी जैसी विशेषताएँ थीं, जो उन्हें असाधारण व्यक्तित्व बनाती हैं।
प्रश्न 2: सही कथन के सामने (✓) का निशान लगाइए—
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बाएँ पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है।
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लोग तो इत्र चुपड़कर फ़ोटो खिंचाते हैं जिससे फ़ोटो में खुशबू आ जाए।
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तुम्हारी यह व्यंग्य मुसकान मेरे हौसले बढ़ाती है।
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जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ अँगूठे से इशारा करते हो?
उत्तर :
सही कथन हैं :
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(✓) बाएँ पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है।
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(✓) तुम्हारी यह व्यंग्य मुसकान मेरे हौसले बढ़ाती है।
गलत कथन :
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लोग तो इत्र चुपड़कर फ़ोटो खिंचाते हैं जिससे फ़ोटो में खुशबू आ जाए।
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जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ अँगूठे से इशारा करते हो?
प्रश्न 3: नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए—
(क) “जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।”
उत्तर: यह व्यंग्य राजनीति और समाज पर है। लेखक कहना चाहता है कि आज के समय में शक्ति और कठोरता (जूता) की कीमत ज़्यादा है, जबकि शिष्टता और आदर (टोपी) का महत्त्व घट गया है। अब हालात ऐसे हैं कि सत्ता पाने के लिए लोग अपमान सहकर भी झुक जाते हैं।
(ख) “तुम परदे का महत्त्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुरबान हो रहे हैं।”
उत्तर: यह व्यंग्य समाज की बनावटी आदतों पर है। लोग सच्चाई पर नहीं, बल्कि दिखावे (परदे) पर ज़ोर देते हैं। परदे के पीछे चाहे कितना भी अंधकार हो, लेकिन समाज उसी परदे को बड़ा मान लेता है। लेखक ने इस प्रवृत्ति पर कटाक्ष किया है।
(ग) “जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ़ हाथ की नहीं, पाँव की अँगुली से इशारा करते हो?”
उत्तर: इस पंक्ति में व्यंग्य उन लोगों पर है जो दूसरों को नीचा दिखाने के लिए अपमानजनक तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। हाथ से इशारा सम्मानजनक होता है, लेकिन पाँव की अँगुली से इशारा करना घृणा और अपमान का प्रतीक है। यह समाज में फैली संकीर्ण सोच पर चोट करता है।
प्रश्न 4: पाठ में एक जगह पर लेखक सोचता है कि ‘फ़ोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी?’ लेकिन अगले ही पल वह विचार बदलता है कि नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी।’ आपके अनुसार इस संदर्भ में प्रेमचंद के बारे में लेखक के विचार बदलने की क्या वजहें हो सकती हैं?
उत्तर : लेखक को पहले लगा कि अगर प्रेमचंद ने फ़ोटो खिंचाने के लिए इतनी साधारण और फटे जूते वाली पोशाक पहनी है, तो उनकी रोज़मर्रा की पोशाक और भी साधारण होगी। लेकिन अगले ही क्षण लेखक को यह महसूस हुआ कि प्रेमचंद दिखावे के लिए अलग पोशाक पहनने वाले व्यक्ति नहीं हैं।उनका जीवन और उनका साहित्य दोनों ही पारदर्शी थे। वे जैसी सोच रखते थे, वैसे ही अपने व्यवहार और जीवन में भी थे। इसलिए लेखक ने विचार बदलकर मान लिया कि प्रेमचंद की पोशाकें अलग-अलग नहीं, बल्कि हर समय एक जैसी सादगी भरी ही होती होंगी।
प्रश्न 5: आपने यह व्यंग्य पढ़ा। इसे पढ़कर आपको लेखक की कौन-सी बातें आकर्षित करती हैं?
उत्तर : इस व्यंग्य को पढ़कर लेखक की कई बातें मुझे आकर्षित करती हैं—
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उनकी सरल और प्रभावी भाषा – उन्होंने कठिन विचारों को भी सहज और हास्यपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया है।
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व्यंग्य की तीक्ष्णता – लेखक समाज और राजनीति की कमियों पर बहुत सटीक और गहरे व्यंग्य करते हैं।
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सच बोलने का साहस – उन्होंने दिखावे, बनावट और खोखले आदर्शों को बिना डर आलोचना की है।
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हास्य और व्यंग्य का संतुलन – वे जहाँ समाज पर कटाक्ष करते हैं, वहीं पाठक को मुस्कराने पर भी मजबूर कर देते हैं।
प्रश्न 6: पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग किन संदर्भों को इंगित करने के लिए किया गया होगा?
उत्तर : पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग जीवन और समाज की ऊँच-नीच तथा असमानताओं को इंगित करने के लिए किया गया है। यह शब्द उन छोटी-बड़ी रुकावटों, कठिनाइयों और सामाजिक विषमताओं का प्रतीक है, जिनका सामना इंसान को अपने जीवन में करना पड़ता है।लेखक ने ‘टीले’ का प्रयोग यह दिखाने के लिए किया है कि प्रेमचंद जैसे लेखक ने सामान्य जीवन जीते हुए भी समाज के उतार-चढ़ाव और समस्याओं को गहराई से महसूस किया और उन्हें अपनी रचनाओं में अभिव्यक्त किया।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 7: प्रेमचंद के फटे जूते को आधार बनाकर परसाई जी ने यह व्यंग्य लिखा है। आप भी किसी व्यक्ति की पोशाक को आधार बनाकर एक व्यंग्य लिखिए।
उत्तर : एक बार मैंने एक नेता जी को देखा। उनका कुर्ता इतना सफेद और चमकदार था कि सूरज भी शर्मा जाए। लेकिन उसी कुर्ते की जेब में जनता की परेशानियों की लंबी सूची ठुसी पड़ी थी, जिसे उन्होंने कभी पढ़ा ही नहीं।उनकी टोपी रोज़ बदलती थी—कभी गांधी टोपी, कभी नेहरू टोपी, कभी बिना टोपी। लेकिन उनके वादे हमेशा एक जैसे पुराने और झूठे होते थे।
प्रश्न 8: आपकी दृष्टि में वेश-भूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है?
उत्तर : आज के समय में लोगों की वेश-भूषा के प्रति सोच में काफ़ी परिवर्तन आया है। पहले कपड़ों को केवल शालीनता और साधारण जीवन का प्रतीक माना जाता था, लेकिन अब कपड़े स्टेटस, फैशन और आधुनिकता का पैमाना बन गए हैं।
लोग अब कपड़ों के ज़रिए अपनी पहचान और व्यक्तित्व दिखाना चाहते हैं। महँगे ब्रांड और ट्रेंडिंग ड्रेस पहनना प्रतिष्ठा का हिस्सा माना जाता है। हालाँकि, एक सकारात्मक बदलाव यह भी है कि अब लोग आरामदायक और कामकाज के अनुसार उपयोगी कपड़ों को भी प्राथमिकता देने लगे हैं।
सोचने वाली बात यह है कि अगर उनके कपड़ों की सफेदी दिल और दिमाग में भी होती, तो शायद देश का भविष्य कुछ और होता।
भाषा अध्ययन
प्रश्न 9: पाठ में आए मुहावरे छाँटिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर : पाठ “प्रेमचंद के फटे जूते” में आए कुछ प्रमुख मुहावरे और उनके वाक्य प्रयोग इस प्रकार हैं—
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नाक कटना – अपमान होना।
अगर परीक्षा में असफल हो गया तो घर की नाक कट जाएगी। -
नाक रखना – मान-सम्मान बनाए रखना।
खिलाड़ी ने देश की नाक रख ली और स्वर्ण पदक जीता। -
हौसला बढ़ाना – आत्मविश्वास जगाना।
शिक्षक की सराहना से विद्यार्थियों का हौसला बढ़ गया। -
इशारा करना – संकेत देना।
पुलिस ने इशारा किया तो गाड़ी रोकनी पड़ी। -
परदा डालना – छिपाना।
उसने अपनी गलती परदा डालने की कोशिश की।
प्रश्न 10: प्रेमचंद के व्यक्तित्व को उभारने के लिए लेखक ने जिन विशेषणों का उपयोग किया है उनकी सूची बनाइए।
उत्तर : लेखक ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व को उभारने के लिए जिन विशेषणों का प्रयोग किया है, वे इस प्रकार हैं—
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सादगीपूर्ण
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ईमानदार
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सरल स्वभाव वाले
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आदर्शवादी
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आत्मसम्मान से भरे हुए
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निष्कपट
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समाज के दुख-दर्द को समझने वाले
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दिखावे से दूर रहने वाले
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गहन विचारशील
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प्रेरणादायी