प्रश्न अभ्यास
प्रश्न 2: कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं ?
उत्तर: कवयित्री के प्रयास व्यर्थ इसलिए हो रहे हैं क्योंकि मनुष्य अपने अंदर के मोह, अहंकार और दिखावटी रीति‑रिवाज़ों से बंधा हुआ है। जब तक ये अंदरूनी बाधाएँ दूर नहीं होतीं, मुक्ति प्राप्ति संभव नहीं हो पाती।
प्रश्न 3: कवयित्री का ‘घर जाने की चाह’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर: कवयित्री का ‘घर जाने की चाह’ से तात्पर्य आत्मा की ईश्वर या परम सत्य के पास लौटने की लालसा है। यह सांसारिक जीवन से ऊपर उठकर वास्तविक शांति और मुक्ति पाने की इच्छा को दर्शाता है।
प्रश्न 4: भाव स्पष्ट कीजिए –
(क) जेब टटोली कौड़ी न पाई।
(ख) खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं, न खाकर बनेगा अहंकारी।
उत्तर: (क) इसका भाव यह है कि संसार की बाहरी चीज़ों या भोग‑विलास की खोज से कोई स्थायी सुख या ज्ञान नहीं मिलता। जीवन की सच्ची संपत्ति भीतर के अनुभव और आत्मज्ञान में है।
(ख) इसका भाव यह है कि जरूरत से अधिक भोग करने से कुछ स्थायी लाभ नहीं होता और केवल निराशा या अहंकार बढ़ता है। वहीं, अगर कोई पूरी तरह संयम में रहता है, तब भी अहंकार से मुक्त होना मुश्किल होता है। संतुलित जीवन और सही कर्म ही सच्चा मार्ग है।
प्रश्न 5: बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए ललदय ने क्या उपाय सुझाया है?
उत्तर: ललदय ने बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए मनुष्य को अपने अंदर के अहंकार, मोह और दिखावटी रीति‑रिवाज़ों को त्यागने का उपाय सुझाया है। केवल सच्चे कर्म, आत्म‑ज्ञान और ईश्वर भक्ति के माध्यम से ही आंतरिक बंधनों को तोड़ा जा सकता है।
प्रश्न 6: ईश्वर प्राप्ति के लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव किन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है ?
उत्तर: यह भाव उन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है जहाँ कहा गया है कि “खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं, न खाकर बनेगा अहंकारी।” इन पंक्तियों में दिखाया गया है कि केवल कठोर तपस्या या हठयोग से ही ईश्वर प्राप्ति संभव नहीं, बल्कि सच्चा मार्ग आत्म‑ज्ञान और सही आचरण से ही मिलता है।
प्रश्न 7: ‘ज्ञानी’ से कवयित्री का अभिप्राय है ?
उत्तर: ‘ज्ञानी’ से कवयित्री का अभिप्राय ऐसे व्यक्ति से है जिसने अपने अंदर के अहंकार, मोह और भ्रम से मुक्ति पाई हो और जो सत्य, ईश्वर‑भक्ति और आत्म‑ज्ञान की ओर अग्रसर हो।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 8: हमारे संतों, भक्तों और महापुरुषों ने बार-बार चेताया है कि मनुष्यों में परस्पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होता, लेकिन आज भी हमारे समाज में भेदभाव दिखाई देता है –
(क) आपकी दृष्टि में इस कारण देश और समाज को क्या हानि हो रही है ?
उत्तर: समाज में भेदभाव के कारण लोगों के बीच असमानता, अविश्वास और संघर्ष बढ़ते हैं। इससे राष्ट्रीय एकता कमजोर होती है और समाज का समग्र विकास रुक जाता है। जब लोग जाति, धर्म, वर्ग या आर्थिक स्थिति के आधार पर अलग‑अलग व्यवहार करते हैं, तो प्रतिभा और सृजनशीलता का पूरा योगदान नहीं मिल पाता। इसके अलावा, यह असमानता समाज में मानसिक दबाव, हिंसा और अन्याय की स्थितियाँ पैदा करती है, जिससे देश की सामाजिक और आर्थिक प्रगति प्रभावित होती है।